शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

''राधा की प्रीत''


कृष्ण के साथ, राधा को सर्वोच्च देवी स्वीकार किया जाता है,
"यह एक जटिल संबंध है, क्योंकि भक्त `समान है फिर भी भिन्न है' भगवान से, और इसलिए मिलन की खुशी में वहां विरह का दर्द है. वास्तव में भक्ति का उच्चतम रूप, मिलन में नहीं होता बल्कि मिलन के बाद होता है, 'विरह के नए डर' में! राधा की विरह को दर्शाती छोटी सी रचना:-
कृष्णा तेरी मूरत में खोई हूँ ऐसे,
चँदा में खो जाए चकोर है जैसे!


तेरी मूरत में सारे जहाँ का प्यार है,
चकोर जैसे बिन चाँद के बेकरार है!


तू है मेरा चाँद चकोर हूँ मैं तेरी,
तेरे बिन क्या है जिंदगानी मेरी!


आँचल में छुपा ले ऐसे तू मुझे,
देख तू मुझको और देखूं मैं तुझे!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...